Book Title: Pramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Author(s): Rashmi Pant
Publisher: Ilahabad University

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Page 397
________________ 386 संस्कृत भाषा का अवलम्बन करने वाली, वाग्व्यापार-प्रधान वृत्ति भारती वृत्ति कहलाती है।' भारतीवृत्ति की विशेषता ये है कि इसकी स्थिति अभिनय तथा अन भिनेय सभी प्रकार के काव्यों में सामान्यरूप से रहती है।2 का रिका में प्रयुक्त प्रायः शब्द का जो प्रयोग किया गया है। उसकी व्याख्या करते हुए ग्रन्थकार लिखते हैं कि यद्यपि भारती वृत्ति का मुख्य स्थान आमुख तथा प्ररोचना भागों को माना गया है किंतु इनते भिन्न स्थानों पर वीथी व प्रहप्तन में भी इसका स्थान पाया जाता है। इसी प्रकार मुख्य रूप से भारी वृत्ति में संस्कृत भाषा का ही प्रयोग होता है किन्तु वह अनिवार्य नहीं है। कभी - कभी संस्कृत से भिन्न प्राकृत भाषा का भी भारतीवृत्ति में अवलम्बन किया जा सकता है। सात्वती वृत्ति - जैनाचार्य रामचन्द्र-गुणचन्द्र के अनुसार, मानसिक, वाचिक तथा का यिक अभिनयों से तचित, आर्जद, डॉट-फ्ट कार (आधर्ष) ।. सर्वरूपकगामिन्यामय - प्ररोचनोत्थिता। प्राय: संस्कृतनि: शेषरसादया वाचि भारती। वही, 3/2 2. वही, वृत्ति , पृ. 275 3 वही, वृत्ति , पृ. 276

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