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पर अत्यधिक भार पड़ा तब भारती वृत्ति उत्पन्न हुई। विष्णु की गतिशाली तीव, दीप्तिकर एवं शक्तिशाली तथा भयरहित चेष्टाओं से सात्वती वृत्ति की उत्पत्ति हुई। विष्णु के विचित्र आंगिक हावभावों व लीला के द्वारा शिण बंधन से के शिकी नामक वृत्ति की उत्पत्ति हुई. व प्रचण्ड आवेग के आधिक्य व विविध मुद्राओं से विष्प के द्वारा युद्ध करने से आरमटी नामक वृत्ति की उत्पत्ति हुई।
___ आचार्य भरत के एक अन्य उल्लेखानुसार ऋग्वेद से भारती वृत्ति, यजुर्वेद से सान्त्वती, सामवेद से कैशिकी व अथर्ववेद से आरटी वृत्ति की उत्पत्ति हुई।
इस प्रकार भरतमुनि ने उक्त चार प्रकार की वृत्तियों का निरूपप किया है। उक्त वृत्तियां प्रधान अंश की दृष्टि से परस्पर पृथक होते हुए भी एक दूसरे से संवलित भी होती है, क्योंकि वा चिक, मानसिक और शारीरिक चेष्टाई परस्पर मिलकर ही एक दूसरे को पूर्पता देती है। अभिनवगुप्तानुसार शारीरिक चेष्टा भी सक्ष्म मानसिक और वाचिक चेष्टाओं से व्याप्त रहती है। अभिनवगुप्त के उक्त मत के आधार पर जैनाचार्य रामचन्द्र-गुपचन्द्र का कथन है कि चार वृत्तियां
1. वही, 22/24 2. अभिनवभारती, भाग-3, पृ. ।