Book Title: Pramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Author(s): Rashmi Pant
Publisher: Ilahabad University

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Page 392
________________ 381 दो स्थान 7/37 और 7/45 पर प्रस्तुत किया है। द्वितीय स्वरूप को उन्होंने प्रकारान्तर से सातिशय ललित कहा है। शाक्याचार्य राहुल आदि आचार्यो ने मौग्ध्य ( मुग्धता), मद, भाविकत्व, परितपन आदि अलंकारों को भी कहा है, परन्तु आचार्य हेमचन्द्र ने भरतमतानुसार ही उनकी उपेक्षा कर दी है।' अयत्नज अलंकारो के विषय में आचार्य हेमचन्द्र की मान्यता है कि शोभा, कान्ति, और दीप्ति बायरूपगत हैं तथा इनमे आवेग, चपलता, अमर्ष, त्रास का तो अभाव ही है। माधुर्य आदि तो स्त्रियों के धर्म हैं, चित्तवृत्ति स्वभाव रूप नहीं। इसलिए इनमें भावों की शंका करने के लिए कोई अवकाश नहीं है।2 आचार्य रामचन्द्र-गुपचन्द्र द्वारा बीस अलंकारों के लक्षण भी पूर्ववत हैं।' नवीनता की दृष्टि से उनके द्वारा किया गया ललित व विलास 1. शाक्याचार्या राहुलादयास्तु मौग्ध्यमदभाविकत्व परितपनादीनप्यलंकारानाचक्षते। तेऽम्मा भिर्भरतमतानुसारिभिरूपेक्षिता।। काव्यानु., वृत्ति, पृ. 431 2. अत्र शोभाका न्तिदीप्तयो वायरूपादिगता एव विशेषा आवेग चापलामर्षत्रासानां स्वभाव एवं। माधुर्याया धर्मा न चित्तवृत्तिस्वभावा इति नैतेषु भावशंकावकाशः।। वही, 431 3 हिन्दी नाट्यदर्पप, 4/27-37

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