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दश स्वाभाविक अलंकार लीला आदि 10 स्वाभाविक अलंकार है ।
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लीला : " वाग्वेषचेष्टितैः प्रियस्यानुकृतिर्लीला" अर्थात् वाणी, वेष और चेष्टाओं के द्वारा प्रिय नायक का अनुकरण करना लीला कहलाता है।
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विलास : "स्थानादीनां वैशिष्ट्यं विलासः " अर्थात् प्रिय के स्थान आदि का वैशिष्ट्य विलास कहलाता है। आदिपद के ग्रहण से स्थान उर्ध्वता के अतिरिक्त बैठना, जाना, हाथ, भौंह, नेत्र कर्म आदि का वैशिष्ट्य भी विलास कहलाता है।
विच्छित्ति : * गर्वादल्पा कल्पन्यास: शोभाकृद विच्छित्तिः " अर्थात् सौभाग्य के गर्व से अल्प आभूषणों का पहनना शोभावर्द्धक होने से विच्छित्ति कहलाता है।
बिब्बोक : "इष्टेऽप्यवता बिब्बोकः " अर्थात् इष्ट वस्तु में अनादर बिब्बोक कहलाता है। सौभाग्य के गर्वादि से इष्ट वस्तु में भी आदर न करना बिब्बोक है।
विभ्रम : "वागंगभूषणानां व्यत्यासो विभ्रमः " अर्थात् वाणी, अंग और आभूषणों का विपर्यय विभ्रम कहलाता है।
किलिकिंचित : "स्मितह सितल दिनभय रोषगर्वदु: खश्रमाभिलाषसंकर : किलिकिंचितम्।" अर्थात मुस्कराना, हंसना, रोना, भय, क्रोध,
लीलादयो दर्श स्वाभाविका: । लीलाविलासविच्छित्ति बिब्बोक विभ्रमकिलिकिंचितमोट्टायित कुट्ट मितल लित विहतनामान: ।
वही, 1/35, व. पृ. 424