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अनिबद्ध - अनिदद का अर्थ है जो निब्द न हो अर्थात् स्वतन्त्र। भामह ने इते अनिबटु की संज्ञा हीदी है, किन्तु परवर्ती आचार्य दण्डी, आनन्दवर्धन, अग्निपुरापकार तथा विश्वनाथ आदि ने इते मुक्तक कहा है। मामह वको क्ति तथा स्वभावोक्ति से युक्त गाथा अथवा प्रलोकमात्र को अनिबद्ध मानते हैं।' दण्डी ने इसे (मुक्तक) और इतकअन्य मेद कुलक, कोश तथा संघात को भी
सर्गबन्ध के अंश रूप में स्वीकार किया है। इती प्रकार वामन अग्नि के एक
परमापु की तरह अनिब्द रचना को शोभायमान नहीं मानते हैं, किन्तु आनन्दवर्धनने मुक्तक को दिशेष महत्ता प्रदान की है। उनके अनुसार प्रबन्ध की तरह मुक्तक में भी रस का सन्निवेश करने वाले कवि दृष्टिगत होते हैं। यथा अमरूक कवि के मुक्तक श्रृंगार रस को प्रवाहित करने वाले प्रबन्ध की तरह प्रसिद्ध ही हैं। उन्होंने अनिबटु के मुक्तक, सन्दा नितक, विशेषक, कलापक, कुलक तथा पर्यायबन्ध इन F: मेदों का उल्लेख किया है।
1. काव्यालंकार, 1/30 2. काव्यादर्श, 1/13 3. काव्यालंकारसूत्र, 1/3/29 + मुक्तकेषु प्रबन्धेष्विव रसबन्धाभिनिवेशिनः कवयो दृश्यन्ते।
यथा हिअमरूकस्य कवेर्मुक्तकाः शृंगाररसत्यन्दिनः प्रबन्धायमानाः प्रस्दिा एव।
- ध्वन्यालोक, 30 वृत्ति 5. वही, 3/7 दृत्ति