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के वर्षन में प्रसिद्धि - विस्तुदोष है। अथवा अनुपात में, यथा -
"चक्री चक्रारपंक्ति ------' इत्यादि उदाहरण में कत्र्ता और धर्म के प्रतिनिधि रूप में स्तुति का वर्णन अनुपात के अनुरोध से ही किया गया है। पुराप, इतिहास में उस प्रकार की प्रसिद्धि नहीं है। अतः उक्त दोष है।
विद्या विरुदुत्व - "कलाचतुर्वर्गशास्त्राणि विद्या कलाश्च गीतनृत्तचित्रकर्मादिकाः। अर्थात कला, चतुर्वर्ग शास्त्र विद्या है और गीत, नृत्त चित्रकर्मादि कलाएं हैं।
गीतविरुद्ध, यथा -
श्रुतिसमधिकमुच्चैः पञ्चमं पीडयन्तः तततममहीनं भिन्नकीकृत्य षड्जम् । प्रपिजगदुरकाकु प्रावक स्निग्धकण्ठा: परिपतिमिति रात्रेर्मागधा माधवाय।।2
यहाँ संगीतशास्त्र विरूद कथन होने से गीतविरुद्ध (वियाविरुद्ध ) दोष है। आ. हेमचन्द्र ने धर्मशास्त्रविस्टु,अर्थशास्त्रविरुद, कामशास्त्र विरुदु और मोशास्त्रविरुद्ध उदाहरण वृत्ति में पृथक् - पृथक् प्रस्तुत किये हैं।
1. वही, पृ. 268 - वही, पृ. 269