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अलंकारों का वर्गीकरप :
यत: अलंकार शब्दार्याश्रित होते हैं, अत: उन्हें प्रमुख रूप से शब्दालंकार और अर्थालंकार के भेद से द्विधा विभाजित करके प्रतिपादित किया गया है। सामान्यतया शब्दों पर आ प्रित रहने वाले अलंकारों को शब्दालंकार व अर्थो पर आश्रित रहने वाले अलंकारों को अर्थालंकार कहा जाता है। कतिपय आचार्यो मम्म्टादि ने शब्द और अर्थ पर समान रूप से आ प्रित रहने वाले अलंकारों को उभयालंकार कहा है। आचार्य मम्मट ने
अलंकारों के विभाजन का मापदण्ड अन्वय - व्यतिरेक स्वीकार किया है।
अलंकारों के विभाजन का मापदण्ड अन्वय - व्यतिरेक तो हेमचन्द्राचार्य ने भी स्वीकार किया है, 2 पर उन्होंने उभयालंकारों के वर्ग को स्वीकार नहीं किया है।
शब्दालंकार : जहाँ शब्दगत चमत्कार पाया जाय वह शब्दालंकार है। शब्दालंकार में शब्द परिवर्तन संभव नहीं है क्योंकि शब्दों का परिवर्तन होने पर काव्यगत सौन्दर्य विनष्ट हो जाता है। अत: शब्दालंकार में शब्दों की विशेष महत्ता होती है।
शब्दालंकारो की संख्या के विषय में आचार्यों में मतभेद रहा है।
भरतमुनि ने मात्र यमक को शब्दालंकार कहा है।' भामहाचार्य ने अनुपात
1. काव्यप्रकाश, पृ. 423 - काव्यानुशासन, पृ. 401 . नाट्यशास्त्र, 17/62