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सरत व्यापार में उदासीन हो जाती है। अधीरा प्रिय को डॉट फटकार करती है व ताडन तक करती है। धीराधीरा व्यंग्यपूर्ण ताने सुनाती है।' इस प्रकार नाट्यदर्पपकार ने नाट्योपयोगी दृष्टि से नायिका का विभाजन करते हुए भरत नाट्यशास्त्र की परम्परा को अक्षुण्ण बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
आ. वाग्भट द्वितीय ने हेमचन्द्राचार्य के समान नायिका की स्वकीया, परकीया व सामान्या तीन भेद किए हैं। पुनः उन्होंने केवल स्वकीया के ही मुग्धा, मध्या व प्रौटा तीन भेद किए हैं। तत्पश्चात् परकीया के दो भेद किए हैं - परस्त्री व कन्या।
उपर्युक्त भेदों के अतिरिक्त श्रृंगारिक अवस्था को भी आधार मानकर प्रायः सभी आचार्यों ने नायिका - भेद प्रस्तुत किए हैं।
आ. हेमचन्द्र ने मरतमुनि और धनंजय की भांति अवस्था भेद से स्वकीया नायिका की 8 अवस्थाओं का प्रतिपादन किया है
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1. वही, पृ. 381 2. नायिका त्रिधा - स्वकीया परकीया सामान्या च।
काव्यानु. वाग्भट पृ. 62 ॐ मुग्धा-मध्या प्रौढामेदेन त्रिधा स्वकीया ।
वही, पृ. 62 + परकीया परस्त्री कन्या च ।
वही, पृ. 62 5. नाट्यशास्त्र 24/203-204
दशरूपक, 2/24-27