Book Title: Pramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Author(s): Rashmi Pant
Publisher: Ilahabad University

View full book text
Previous | Next

Page 384
________________ 373 स्वाधीनपतिका, प्रोषितभर्तृका, पण्डिता, कलहान्तरिता, वासकतज्जा, विरहोत्कण्ठिता, विप्रलब्धा और अभितारिका।' 018 स्वाधीनपतिका : "रतिगुपाकृष्टत्वेन पार्वस्थितत्वात स्वाधीन आयस्तः पतिर्यस्याः सा तथा" अर्थात रति गुप में आकृष्ट होने से जिसका पति समीप और अधीन रहता है ऐसी नायिका स्वाधीनपतिका कहलाती 82 पोषितभर्तृका : "कार्यत पोषितो देशान्तरं गतो मा यत्याः सा तया" अर्थात् जिसका प्रति किसी कार्य विशेष से देशान्तर में चला गया हो, वह प्रोषित भर्तका कहलाती है। 3 वण्डिता : वनितान्तरव्या सगादनागते प्रिये दुःसंतप्ता पण्डिता अर्थात दूसरी स्त्री के साथ रमप करने से अनागत प्रिय में सन्तप्त खण्डिता नायिका कहलाती है। 348 कलहान्तरिता : ईकिलहेन निष्कान्तभर्तकत्वात्तरसंगमसुखेनान्तरिता कलहान्तरिता" अर्थात ईर्ष्या और कलह के द्वारा पति को निकाल देने वाली पुनः उसके समागम से सुखी होने वाली कलहान्तरिता नायिका कहलाती है। 1. काव्यानु. 7/30

Loading...

Page Navigation
1 ... 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410