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आ. हेमचन्द्र ने दशरूपककार की भांति नायिका के भेद-प्रमेदों का निरूपप करते हुए सर्वप्रथम नायिका के तीन भेद बताये हैं - स्वकीया, परकीया और सामान्या।'
स्वकीया नायिका : दशरूपककार के अनुसार शील, आर्जव आदि से युक्त
स्वीया नायिका कहलाती है।2 आ. हेमचन्द्र ने इसके साथ स्वयमढा' विशेषण भी जोड़ा है तथा आदिपद से आर्जव, लज्जा, गृहाचार निपुपता आदि का गहण किया है। दोनों ही आचार्यों ने स्वकीया नायिका के तीन भेद - मुग्धा, मध्या और प्रौदा बतलाये हैं। आ. हेमचन्द्र ने अवस्था और कौशल के आधार पर ये भेद माने हैं। उन्होंने लिया है - 'क्यः कौशलाभ्यां मुग्धा मध्या प्रौदेति सा त्रेधा" अर्थात् अवस्था और कामकला में निपुपता के आधार पर स्वकीया नायिका तीन प्रकार की होती है- मुग्धा, मध्या और प्रौटा। पुनः मध्या और प्रौटा के तीन-तीन प्रकार बतलाये हैंधीरा, धीराधीरा और अधीरा।' इन छहों के ज्येष्ठा और कनिष्ठा भेद से बारह मेद हो जाते हैं।' प्रथम परिपीता को ज्येष्ठा
1. सा च स्वकीया, परकीया, सामान्या चेति त्रिधा।
___ काव्यानु कृ. पृ. 413 2. मुग्धामध्याप्रगल्भेति स्वीया शीलार्जवादियुक्।
दशरूपक 2/15 3. स्वयमदा शीलादिम्ली स्वा।
___ काव्यान. 7/22 + वही, वृत्ति , पृ. 413 5. धीराधीराधीराऽधराभेदादन्त्ये त्रेधा। वही 7/24 6 षोढापि ज्येष्ठाकनिष्ठाभेदाद द्वादशधा। वही, 7/25