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और पश्चात् परिपीता को कनिष्ठा कहा गया है।' मध्याधीरा उपडासपूर्ण कुटिलवापी ते, मध्याधी राधीरा ताने मार कर रोती हुई और मध्या अधीरा कठोरवापी के द्वारा अपना को अभिव्यक्त करती है। इसीप्रकार प्रौदाधीरा नायिका उपचार और अवहित्था के द्वारा प्रौदाधीराधीरा अनुकूलता और उदासीनता के द्वारा तथा प्रौदा अधीरा संतर्जन अर्थात मारपीट कर एवं आघात के द्वारा अपना क्रोध व्यक्त करती है। यह विवेचन प्रायः धनंजय की भांति है।
परकीया नायिकाः परकीया नायिका दो प्रकार की होती है- किसी दूसरे
की परिपीता स्त्री और कन्या (अविवाहिता)' अवरूद्ध को भी परस्त्री ही कहा जाता है। परकीया नायिका अंगी रस में उपका रिपी नहीं होती है इसलिये आ. हेमचन्द्र ने इस पर कोई विचार नहीं किया है।
सामान्या नायिकाः तीसरी श्रेपी की नायिका साधारपस्त्री है। यह गपिका
होती है, जो कलाचतुर, प्रगल्भा तथा धर्त होती है। आ. हेमचन्द्र ने भी गपिका को ही सामान्या कहकर प्रतिपादित किया है।'
1. "तत्र प्रथममढा ज्येष्ठा पश्चादा कनिष्ठा।
काव्यानु. वृत्ति. पृ. 415 2. सोतपकास कोधत्या सवाष्पया वाक्पारुष्येप को धिन्यो मध्या धीराधाः।
वही, 7/26 3 उपचारावहित्थाभ्यामानुकल्योदासिन्याभ्यां संतर्जनाधाताभ्यां प्रौटा
धीराधाः वही, 1/27 + परोढा परस्त्री कन्या च। वही, 7/28 5. अवरूद्वापि परस्त्रीत्युच्यते। बही, . पृ. 417 6. साधारपस्त्री गापिका कलाप्रागल्भ्यधौर्ययुक। वही, 2/21 7. गणिका मामान्या च्यानु, 7/29