Book Title: Pramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Author(s): Rashmi Pant
Publisher: Ilahabad University

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Page 371
________________ ___ 360 360 १. शठ : “गदापराधः ठः अर्थात गूढ (भारी) अपराध करने वाला नायक शठ है। ___ उपर्युक्त नायक मेदों के लक्षण दशरूपककार से लगभग मिलते-जुलते हैं।' आ. हेमचन्द्र ने नायक के भेदों का निरूपप जो दिया है वह परम्परागत ही है। वे सर्वप्रथम नायक को चार प्रकार का बतलाकर प्रत्येक के चार-चार मेदों को यथावत स्वीकार करते है। इस प्रकार उन्हें नायक के 16 मेद मान्य है।2 दशरूपककार ने इन 16 मेदों के ज्येष्ठ, मध्यम और अधम भेद से 48 मेद बतलाये हैं।' इस दृष्टि से भी आ. हेमचन्द्र से समानता है क्योंकि वे भी पुरूष और स्त्रियों की उत्तम, मध्यम और अधम - ये तीन प्रकृतियां मानते ही हैं। यदि इन तीनों प्रकृतियों के पृथक - पृथक 16-16 मेद मान लिये जायें तो 48 मेद हो ही जाएंगे और दोनो आचार्यों में कोई अन्तर नहीं रह जाएगा। लेकिन दशरूपककार की भांति काव्यानुशासनकार ने ऐसा कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है। आचार्य रामचन्द्रगुपचन्द्र के अनुसार भी नायकों के धीर विशेषण ते युक्त उद्त, उदात्त, ललित और प्रशांत अर्थात, धीरोदत, धीरोदात्तः • तुलनीय - दशरूपक 2/3-7 2. "त इति नायकः । धीरशब्दः प्रत्येकमभिसंबध्यते। तेन धीरोदात्तो धीरललितो धीरशान्तो धीरोद्त इति। दक्षिपधृष्टानुकलपाठभेदादकैकप चतुर्धा। एते श्रृंगाररसाश्रयिपो भेदाः। इति षोडाभेदा नायकन्य। काव्यानु. व. पु. 410 - दशरूपक, 2/7, वृत्ति , पृ. 92

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