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आचार्य नरेन्द्रप्रभतरि शौर्यादि के सदृश आत्मा के आश्रित
रहने वाले गुणों से विपरीत हारादि अलंकारों की तरह आहार्य ( ग्रहण करने और त्यागने योग्य) अनुपात और उपमादि को अलंकार मानते हैं।'
इस प्रकार जैनाचार्य वाग्भट प्रथम, हेमचन्द्र व नरेन्द्रप्रभतरि ने
अलंकार व उसके महत्त्व के संबंध में आचार्य आनन्दवर्धन व मम्म्टाचार्य का
ही अनुसरण किया है।
अलंकारों की संख्या :
सर्वप्रथम भरतमुनि ने केवल 4 अलंकारों का उल्लेख किया। तत्पश्चात भामहाचार्य ने 38 अलंकारों का उल्लेख किया, दण्डी ने 37, वामन ने 31
और उदमट ने 41 अलंकारो का प्रतिपादन किया। रूट द्वारा प्रतिपादित अलंकारों की मुख्य संख्या 54 तथा मिश्रित संख्या 73 है। भोजराज ने 72, अग्निपुरापकार ने 16 तथा रूय्यक ने 82 अलंकार माने हैं। मम्म्टाचार्य ने 67 अलंकारों का प्रतिपादन किया है।
जैनाचार्य वाग्भ्ट प्रथम ने 39, हेमचन्द्राचार्य ने 35, आचार्य नरेन्द्रप्रभसरि ने 77, आचार्य वाग्भट दितीय ने 69 एवं भावदेवतरि ने 58 अलंकारों का प्रतिपादन किया है।
1. अयन्तोऽपि रसं सन्तं जात तेभ्यो विपर्ययम्। ये तु विभत्यलंकारास्तेऽनपासोपमादयः।।
अलंकारमहोदधि, 6/20...