________________
332
171 पर्यायोक्त - "व्यंग्यत्यो क्तिः पर्यायोक्तम्” अर्थात् व्यंग्य का पर्याय से कथन करना पर्यायोक्त है। यह लक्षप भी मम्मट से मिलताजुलता है।'
388 अतिशयोक्ति - “विशेषविवक्ष्या भेदाभेदयोगायोगव्यत्ययो - ऽतिशयोक्ति : अर्थात् विशेष विवक्षा से भेद, अभेद, योग और अयोग का विपरीत वर्पन अतिशयोक्ति है। वे इसके चार भेदों को मानते हैं - भेद में अभेद, अभेद में भेद, सम्बन्ध में असम्बन्ध और सम्बन्ध में सम्बन्ध।
११ आक्षेप - "विवक्षितस्य निषेध इवोपमानस्याक्षेपश्चाक्षेपः" अर्थात जो बात कहना चाहते हैं उसका निषेध और इव-उपमान का आक्षेप या तिरस्कार कर देना आक्षेप कहलाता है। इसीप्रकार मम्मट मी आक्षेप को दो प्रकार का मानते हैं- वक्ष्यमाण का निषेध और उक्त विषय का निषेध (इवोपमान का आक्षेप)2
8108 विरोध - "अर्थानां विरोधाभासो विरोधः" अर्थात् अर्थों के विरोध का आभास विरोध अलंकार है। मम्म्ट और हेमचन्द्र के प्रतिपादन में कोई अन्तर नहीं है। हेमचन्द्र ने भी मम्मट के समान जाति, गुण, क्रिया और द्रव्यरूप पदार्थों का सजातीय अथवा विजातीय के साथ
1. तुलनीय – काव्यप्रकाश 10/174 2. वही, 10/166