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अपहनुति
“प्रकृताप्रकृताभ्यां प्रकृतापलापोऽपह्नुति : "
अर्थात् जहाँ प्रस्तुत से प्रस्तुत का अथवा अप्रस्तुत से प्रस्तुत का अपलाप किया जाय वहाँ अपह्नुति अलंकार होता है । मम्मट ने प्रस्तुत का निषेध करके अप्रस्तुत की सिद्धि को अपनति कहा है। तथा प्रकट हुये वस्तु के स्वरूप को छलपूर्वक छिपाने के वर्णन को व्याजोक्ति | 2 परन्तु आ. हेमचन्द्र ने अपहनुति के उपर्युक्त लक्षण में मम्मट सम्मत अपह्नुति और व्याजोक्तिइन दोनों के स्वरूपों को स्थान दिया है। वे व्याजोक्ति को पृथक्
अलंकार मानने के पक्ष में नहीं हैं।
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परिवृत्ति $200 * पर्यायविनिमयौ परिवृत्तिः " अर्थात पर्याय का विनिमय परिवृत्ति है। आशय यह है कि एक पद का अनेक जगह अनेक का एकत्र क्रमशः वृत्ति है। सम के द्वारा सम का उत्कृष्ट रूप से निकृष्ट का निकृष्ट के द्वारा उत्कृष्ट रूप से व्यतिहार विनिमय है। अतः पदार्थों का समान या असमान (उत्तम अथवा हीन पदार्थों ) के साथ जो परिवर्तन का वर्पन है वह परिवृत्ति है।
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$218 अनुमान " हेतोः साध्यावगमोऽनुमानम्" अर्थात् कारण से
कार्य का ज्ञान करना अनुमान है। अन्यथानुपपत्ति के एकमात्र लक्षण हेतु
से साध्य कार्य या जिज्ञासित अर्थ की प्रतीति का जहाँ वर्णन किया जाय
वहाँ अनुमान है।
1. काव्यप्रकाश, 10/145
2. वही, 10/183