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आ. नरेन्द्रप्रभरि का अलंकार
वर्गीकरण स्पृयक ते प्रभावित है।'
अन्तर मात्र ये है कि स्पयक ने जिन अलंकारों के मल में सादृश्य को स्वीकार किया है, वहीं नरेन्द्रयसरि ने उनके मूल में अतिशयोक्ति को माना है।
यक ने रसवदादि अलंकारों को अवर्गीकृत रक्खा है, किंतु नरेन्द्रप्रमसरि ने उन्हें रसवदादि की संज्ञा से अभिहित किया है। 2 शेष विवेचन में प्रायः साम्य
है। 3
1. जैनाचार्यों का अलंकारशास्त्र में योगदान, पू. 232
2. वही, पृ. 232
3. वही, पृ. 232