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इस प्रकार नाट्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध मे यह मत भारतीय परंपरा है। दसरा मत उन सभी देशी व विदेशी आधुनिक विद्वानों का है, जिन्होंने लोकनत्यादि में उसका उत्स खोजा है। पाश्चात्य विद्वान मेक्डोनल नाच से ही नाटक की उत्पत्ति मानते हैं।' इसी प्रकार प्रो० पिशेल पुत्तलिका-नृत्य से भारतीय नाटकों की उत्पत्ति मानते हैं। 2
जैनाचार्यो ने नाट्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं किया
भरतमुनि के उत्तरकाल में नाट्यशास्त्र के आधार पर मुख्यतः तीन नाट्यशास्त्रीय गन्थों की रचना हुई - (1) धनंजय द्वारा रचित दशरूपक, (2) तागरनन्दीकृत नाटकलक्षणरत्नकोश, (3) रामचन्द्रगुणचन्द्रकृत नाट्यदर्पप।
नाट्यशास्त्र पर स्वतंत्र ग्रन्थ - लेखन की अविच्छिन्न परम्परा चलने पर भी भामह - दण्डी आदि आचार्यों द्वारा प्रपीत अलंकारशास्त्रों में नाट्यविषयक सिद्धान्तों का समावेश दृष्टिगत नही होता है, किन्तु संभवत: जैनाचार्य हेमचन्द्र ने सर्वप्रथम अलंकारशास्त्र के साथ नाट्य - तत्वों का भी समावेश किया है और आगे चलकर इसी परम्परा में विद्यानाथ (14वीं शताब्दी का प्रथम चरप) के "प्रतापरूद्रयशोभूषण', विश्वनाथ (14वीं शताब्दी) के "साहित्यदर्पप" व कामराज दीक्षित (ई. सन् 1700 के लगभग) के “काव्येन्दुप्रकाश आदि गन्य आते हैं।
I. ए हिस्ट्री आफ संस्कृत लिट्रेचर - ए. मेक्डोनल, पृ. 346 2. संस्कृत ड्रामा - कीथ, पृ. 52