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आचार्य रामचन्द्रगुपचन्द्रकृत नायक-स्वरूप कुछ विशिष्ट है। उनके अनसार नायक प्रधान पल को प्राप्त करने वाला, स्त्री आदि के प्रति आसक्ति अथवा प्राण - हानि आदि रूप विपत्ति से रहित होता है।'
आचार्य वाग्भट द्वितीय के अनुसार बुदि, उत्साह, स्मृति, प्रज्ञा, शारदीरता, गम्भीरता, धैर्य, स्थिरता, माधुर्य, कला, कुशलता, विनयशीलता, कुलीनता, नीरोगिता, शुचिता, अभिमा निता, नायिका - सम्मतता, मिष्टभा भित्व, लोकानुरंजकता, वाग्मिता, उच्चकुलोत्पन्नता, तेजस्विता, दता, तत्वशास्त्रज्ञता, अगाम्यता, श्रृंगारिता और सुगमता आदि नायक के गुप हैं।
नायक के सात्विक गुप : नायक के अन्तर्गत आठ प्रकार के तात्विक गों की स्थिति होना आवश्यक है।
जैनाचार्य हेमचन्द्र के अनुसार शोभा, विलास, ललित, माधुर्य, स्थैर्य, गाम्भीर्य, औदार्य और तेज - ये आठ सात्विक गुण हैं। ये सत्व गुपों से युक्त होने के कारप सात्विक गुप कहलाते हैं। आ. हेमचन्द्र के अनुसार इनका स्वरूप निम्न प्रकार है - ३।४ शोभा : “दाक्ष्यशौर्योत्साहनीजुगुप्तोत्तमस्पर्धागमिका शोभा" अर्थात
1. प्रधानफ्लसम्पन्नो व्यसनी मुख्यनायक :
हिन्दी नाट्यदर्पप 4/7 2. काव्यानुशासन, वाग्भट, पृ. 62
3. शोभा विलासललितमाधुर्यस्थैर्यगाम्भीयौदार्यतजा स्पष्टौ सत्वजास्तद्गपाः।। ... काव्यानुशासन, 1/2
th काव्यानुशासन, 7/2