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के अनुचर-विट, बेटी, विभक आदि को बतलाया है।'
आचार्य रामचन्द्रगुपचन्द्र के अनुसार नाटकीय पात्र स्त्री हो या पुरुष, दोनों की उत्तम मध्यम तथा अधम तीन प्रकार की प्रकृति होती है। तथा अपने अपने गुपों के तारतम्य से उनमें से प्रत्येक के फिर तीन-तीन भेद हो सकते है।2 उत्तम प्रकृति का पात्र शरपागतों के रक्षप में साधु, अनुकल, त्यागी, लोकव्यवहार तथा शास्त्रों में निपुप, गंभीरता, धीरता, पराक्रम व न्याय विचार से युक्त होता है। जो न तो अधिक उत्कृष्ट गुणों से सम्पन्न होता है न ही अधिक निकृष्ट गुणों से सम्पन्न होता है तथा लोक-व्यवहार में चतुर कला, विद्वत्ता आदि गुपों से युक्त होता है, वह मध्यम प्रकृति का पात्र होता है। अधम या नीच प्रकृति का पात्र अत्यन्त पाप करने वाला, चुगलखोर, आलसी, कृतघ्न, झगड़ाल, पराक्रम विहीन, स्त्री - निरत व रूक्ष बोलने वाला होता है।
1. तत्र तावदुत्तममध्यमाधमभेदन पुंसां स्त्रीपां च तिसः प्रकृतयो भवन्ति।
तत्र केवलगुपमपयुत्तमा। स्वल्पदोषा बहुगपा मध्यमा। दोषवत्यधमा। तत्राधमप्रकृतयो नायकयोरनुचरा विटचेटी विदूषकादयो भवन्ति।
काव्यानुशासन, वृत्ति, पृ. 406 2. उत्तमा मध्यमा नीचा प्रकृति स्त्रियो स्त्रिधा। एकैकापि त्रिधा स्व-स्वगुपानां तारतम्यतः।।
हि. नाट्यदर्पप, 4/3 3. वही, पृ. 370 + वही, पृ. 370 5 वही, पृ. 370