________________
354
स्त्री-पात्र भी शील स्वभाव के कारण उत्तमा, मध्यमा व अधमा
भेद ते तीन प्रकार की होती हैं।'
नायक स्वरूप : विभिन्न आचार्यों ने विविध प्रकार से नायक का स्वरूप निरूपित किया है। दशरूपककार धनंजय के अनुसार विनीत आदि गुपों से युक्त नेता (नायक) होता है।
जैनाचार्य वाग्भट-प्रथम ने नायक को रूपवान, धनवान, कुलीन, अन्द्रत, सत्य और प्रियभाषी तथा सद्गुणों से युक्त व यौवनसम्पन्न बताते हैं। हेमचन्द्राचार्य ने उत्तम व मध्यम प्रकृति वाले नायक का स्वरूप "समग्रगुपः कथाव्यापी नायक: प्रस्तुत किया है जिसका तात्पर्य यह है कि दशरूपककार द्वारा कथित विनीतादि गुणों व शोभादि 8 सात्विक गुणों से युक्त और सम्पूर्ण कथा प्रबन्ध में व्याप्त रहने वाला नायक कहलाता है। इस प्रकार आ. हेमचन्द्र धनंजयकृत स्वरूप के अतिरिक्त नायक को समग कथाव्यापी भी मानते हैं।
1. हि. नाट्यदर्पप, पृ. 371 2. नेता विनीतो मधुरत्यागी क्षः प्रियंवदः।
रक्तलोक : शचिवाग्मी स्टवंशः स्थिरो युवा।। बुदयुत्साहत्मृतिपज्ञाकलामानसमन्वितः। भूरोि दृढपच तेजस्वी शास्त्रचक्षुच धार्मिकः।।
क्षारूपक 2/1-2 3 काव्यानु, /1