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आचार्य नरेन्द्रसमसरि ने 71 अर्थालंकारों का विवेचन किया है - अतिशयोक्ति, सहोक्ति, उपमा, अनन्वय, उपमेयोपमा, स्मरप, संशय, भान्तिमान, उल्लेख, रूपक, अपनुति, परिणाम, उत्पेषा, तुल्ययोगिता, दीपक, निदर्शना, प्रतिवस्तुपमा, दृष्टान्त, अर्थान्तरन्यास, व्यतिरेक, विनोक्ति, परिकर, समासोक्ति, अप्रस्तुतपर्शता, पर्यायोक्त, आप, व्याजस्तुति, श्लेष, विरोध, असंगति, विशेषोक्ति, विभावना, विषम, सम, अधिक, विचित्र, पर्याय, विकल्प, व्याघात, अन्योन्य, विशेष, कारपमाला, सार, एकावली, मालादीपक, काव्यलिंग, अनुमान, यथातथ्य, परिवृत्ति, परिसंख्या, अर्थापत्ति, समुच्चय, समाथि प्रत्यनीक, प्रतीप, मी लित, सामान्य, तद्गुप, अतद्गप, उत्तर, सूक्ष्म, व्याजोक्ति, स्वभावोक्ति, उदान्त, रसवद, पेय, उर्जास्ति, समाहित, संसृष्टि व संकर'। इस प्रकार नरेन्द्रप्रभतरि ने किसी नवीन अलंकार की उन्नावना नहीं की है तथा मम्मट सम्मत अलंकारों के अतिरिक्त स्यूयका दि - सम्मत अलंकारों को भी स्वीकार किया है रसवदादि अलंकारों को इन्होंने सिद्धान्त रूप में स्वीकार नहीं किया है क्योंकि कुछ विद्वानों ने प्रतिपादन किया है अतः उन्होंने भी उल्लेख कर दिया है।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आ. नरेन्द्रप्रभसूरि ने आ. वाग्मट प्रथम द्वारा उल्लिखित हेतु, अवसर और प्रश्नोत्तर नामक तीन अलंकारों को स्वीकार नहीं किया है।
1. आलंकारमहोदधि अष्टम तरंग 2 अलंकारमहोदधि 8/85-86