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निन्दा में और निन्दा का स्तुति में पर्यवसान क्रमशः व्याजरूपास्तुति और व्याज से स्तुति दोनों अर्थ ते व्याजस्तुति कहलाता है। इसके विवेचन में मम्मट से पूर्व साम्य है।
8158 पलेष - "वाक्यस्यानेकार्थता श्लेषः' अर्थात् वाक्य की अनेकार्थता श्लेष है। आशय यह है कि पदों की एकार्थता होने पर भी जहां वाक्य की अनेकार्थता हो वह प्लेष नामक अर्थालंकार कहलाता है।
1168 व्यतिरेक - "उत्कर्षापकर्षहत्वोः साम्यस्य चोक्तावनुक्तो चोपमेयत्याधिक्यं व्यतिरेक : अर्थात उपमेय का उपमान से अधिक वर्पन करना व्यतिरेक है। आचार्य हेमचन्द्र ने मम्मट का ही अनुकरप करते हुए इसके भेद-प्रभेदी पर विचार किया है।
1178 अर्थान्तरन्यास - "विशेषस्य सामान्येन साधर्म्यवैधाभ्यां समर्थनमर्थान्तरन्यासः' अर्थात जहाँ विशेष का सामान्य के द्वारा साधर्म्य अथवा वैधर्म्य पूर्वक समर्थन किया जाता है वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है। यह मम्मट का एकदेश अनुकरप है। मम्मट सामान्य का विशेष से और विशेष का सामान्य से दोनों का समर्थन साधर्म्य और वैधर्म्य पूर्वक मानते हैं।
1. तुलनीय - काव्यप्रकाश 10/168 2. सामान्यं वा विशेषो वा तदन्येन समयत। यत्तु सोऽर्थान्तरन्यासः साधम्र्येक्तरेष वा ।।
वही, 10/164