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उत्प्रेक्षा
"असद्मसंभावनमिवादिद्योत्योत्प्रेक्षा" अर्थात् असदर्भ
की सम्भावना इवादि के द्वारा पोतित होने पर उत्प्रेक्षा कहलाती है। मम्मट' और हेमचन्द्र का उत्प्रेक्षा अलंकार का स्वरूप मूलत: समान ही है। उत्प्रेक्षा के द्योतक इव, मन्ये, शके ध्रुवं प्रायः, नूनम् इत्यादि शब्द हैं।
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* सादृश्ये भेदेनारोपो रूपकमेकानेक विषयम्" अर्थात्
सादृश्य के होने पर भेद द्वारा आरोपित एकविषयक और अनेकविषयक रूपक अलंकार होता है । मम्मट के अनुसार उपमान और उपमेय का अभेद वर्णन रूपक है। 2 अतः दोनों आचार्यों के लक्षणों मे अन्तर है।
रूपक
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3.
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निदर्शन "इष्टार्थसिद्धये दृष्टान्तो निदर्शनम् " अर्थात् इष्टार्थ की सिद्धि के लिये जो दृष्टान्त का निर्देश किया जाता है वह निदर्शनालंकार है। इसमें मम्मट सम्मत दृष्टान्त अर्थान्तरन्यास और निदर्शन के लक्षणों का एकदेश समावेश किया गया है। आ. हेमचन्द्र ने निदर्शन और अर्थान्तरन्यास का अन्तर स्पष्ट करते हुये लिखा है कि जहाँ सामान्य अथवा विशेष का विशेष के द्वारा समर्थन किया जाता है वहाँ निदर्शना अलंकार होता है और जहाँ विशेष का सामान्य के द्वारा समर्थन किया जाता है वहीँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है। 3 आ. मम्मट उक्त दोनों
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1. सम्भावनमथोत्प्रेक्षा प्रकृतस्य समेन यत् ।
काव्यप्रकाश 10/136
2. तदूपकमभेदो य उपमानोपमेययोः ।
वही, 10/138
यत्र सामान्यस्य विशेषस्य वा विशेषेण समर्थनं तन्निदर्शनम् । यत्र तु विशेषस्य सामान्येन समर्थनं सोऽर्थान्तरन्यासः ।
काव्यासह टीका, पृ. 353