________________
323
अनर्थक शब्दो में आपाततः समानार्थकता की प्रतीति जहां होती है वह
पनरूक्ताभास है। पुनरूक्तवद् आभास होने से पुनरूक्ताभास कहते हैं।
आ. नरेन्द्रप्रभतरि ने अनुपात, यमक, चित्र, पलेष, वको क्ति और पुनरूक्तवदाभास - इन : शब्दालंकारों को स्वीकार किया है। इन्होंने सर्वप्रथम अनुपात के चार भेद - श्रुति, ठेक, वृत्ति एवं लाट किए हैं।' तत्पश्चात - श्रुति के पुद, संकीर्प और नागर - ये तीन भेद किए हैं। 2 ठेकानुप्रास कमशाली, विपर्यस्त, वेपिका एवं गर्भित चार प्रकार का बताया है। इनके अनुसार समान वर्गों के अक्षरों की आवृत्ति वृत्त्यनुपात है, यह कवित्व का प्रापभूत है तथा यह बारह प्रकार का होता है - कांटी, कौन्तली, काँगी, कौंकपी, वानवातिका, त्रावपी, माधुरी,
1. अलंका रमहोदधि 7/2 2. वही, 7/4
कमशाली विपर्यस्तो वेणिका गर्भितस्तथा। क्रमशाली कमोपेतः, विपर्यस्तः कमात्ययी।। आवाक्यान्तगतानकेवावृत्तिस्तु वेणिका। गर्भितस्त्वपरो वर्पस्तोमो यत्रान्यगर्भितः।।
वही, 7/14 यदि वा यत्र वापां वयरावर्तनं निजैः। वत्यनपासमिच्छन्ति तं कवित्वैकजीवितम।।
वहीं, 1/14