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द्वारा जब प्रोता दूतरे ही ढंग से लेता है तो दह वक्रोक्ति कहलाती है।
इस प्रकार आ. हेमचन्द्र का वको क्ति का स्वरूप मम्मट । की ही भांति है, किन्तु अपेक्षाकृत सरल है। वक्रोक्ति के प्रसंग में उन्होंने काक-वक्रोक्ति को अलंकार नहीं माना है, अपितु उसे मात्र पाठधर्म कहा है। इसके समर्थन में उन्होंने राजशेखर की पंक्ति "अभिप्रायवान् पाठधः काकुः स कथमलंकारीस्यादिति यायावरीयः" उधृत कर स्वमत की पुष्टि की है। अत: मम्मट से इस विषय में हेमचन्द्र की विचारधारा भिन्न है। काकु को उन्होंने केवल गुपीमतव्यंग्य का भेद माना है और ध्वनिकार की कारिका भी उधृत की है। आ. हेमचन्द्र ने काकु को साकांक्षा और निराकांक्षा भेद से दो प्रकार का प्रतिपादित किया है और उसके विषय को 3 प्रकार का कहा है - अर्थान्तर, तदर्थगत एवं विशेष और तदर्थाभाव।
368 पुनरूक्ताभास : आ. हेमचन्द्र पुनरूक्ताभास को मात्र शब्दालंकार ही मानते हैं। उनके अनुसार "भिन्नाकृते: शब्दत्यैकार्थतव पुनरुक्ताभासः अर्थात भिन्न आकृति वाले शब्द की एकार्थता ही पुनरूक्ताभाप्त है। आगे वे लिखो हैं कि भिन्न रूप से सार्थक और कहीं-कहीं दोनों या एक के
1. यदुक्तमन्यथावाक्यमन्यथाऽन्येन योज्यते। श्लेषण का क्वा वा ज्ञेया सा वको क्तिस्तथा दिधा।।
वही, 9/102 2. गुपीभूतव्यंग्यप्रभेद एवं चायम। शब्दस्पुष्टत्वेनार्थान्तरप्रती तिहेतुत्वात्। यदाह ध्वनिकारः - अर्थान्तरगतिः काक्वा या चैषा परिदृश्यते।
सा व्यंग्यस्य गुणीभावे प्रकारमिममा प्रिता।। काव्यानुशासन, वृत्ति, पृ. 333 3 सा च काकुर्द्विविधा - साकांक्षा निराकांक्षा च । वाक्यस्य साकांक्ष
निराकासत्वात । विषयोऽपि विविधः-अर्थान्तरं तदर्थगत एव विशेषः तंदर्याभावो मा। -नहीं.प्र.336