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व यमक - इन दो का उल्लेख किया है। दण्डी ने यमक और किालंकार को उपमा रूपका दि से पृथक शब्दालंकार स्वीकार किया है। सर्वप्रथम रूट ने स्पष्ट रूप से वक्रोक्ति, अनुपात, यमक, प्रलेष और चित्र को शब्दालंकार कहा है। आचार्य मम्मट ने शब्दालंकार के अन्तर्गत वक्रोक्ति, अनुपात, यमक, श्लेष, चित्र व पुनरूक्तवदाभास का प्रतिपादन किया है, परन्तु उनके म्त में प्रथम पांच ही मलत: शब्दालंकार हैं। अन्तिम पुनरूक्तवदाभास को वे उभयालंकार के रूप में मानते हैं। इसी लिये उन्होंने उत्ते शब्दालंकारों के अन्त मे तथा अर्थालंकारों के विवेचन से पूर्व रखा है।
जैनाचार्य वाग्भट प्रथम ने चित्र, वक्रोक्ति, अनुपात और यमक इन + अलंकारों को शब्दालंकार कहा है। उन्होंने चित्र के एक स्वरचित्र आदि अनेक भेद प्रस्तुत किए हैं। वक्रोक्ति के केवल दो ही भेद किए हैंतभंगवलेषवको क्ति और अभंगश्लेषकको क्ति'। अनुप्रास के - कानपास व लाटानुपास ये दो भेद किए हैं तथा यमक के 24 मेदों का सोदाहरप
1. द्रष्टव्यः जैनाचार्यों का अलंकारशास्त्र में योगदान, पृ. 206 2. वक्रोक्तिरनपासो यमकं श्लेषस्तथा परं चित्रम्। शब्दस्यालंकाराः श्लेषोऽर्थस्यापि सोऽन्यस्तु।।
स्ट-काव्यालंकार, 2/13 3 काव्यप्रकाश - नवस उल्लास + वही, पृ. 439 5 चित्र वक्रोक्त्यनुपातो यमकं ध्वन्यलंकिया
वाग्भटालंकार, 4/2.. & वही, 4/9 - 13 7. वही: 4/15-16 & वही, 4/17