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पादा और भागज भेद है. द्विधा विभक्त कर' पादज के 15 मेदों का उल्लेख किया है। इसी प्रकार मम्म्ट ने पाद को दो भागो मे तिक्त करने पर 20, तीन भागों में विभक्त करने पर 30 और चार भागों मे विभक्त करने पर 40 भेदों का उल्लेख किया है 3 परन्तु आवार्य हेमचन्द्र ने कमश: 28, 42 और 56 भेद बतलाए हैं। 4
3. चित्र : आ. हेमचन्द्र ने चित्रालंकार का जो स्वरूप पस्तुत किया है उसते उनकी चित्रालंकार भेदविषयक मान्यता भी स्पष्ट होती है। उन्होंने लिखा है कि "स्वरव्यंजनस्थानगत्याकारनियमच्युतगटादि चित्रम् अर्थात स्वर, व्यंजन, स्थान, गति, आकार, नियम, च्युत और गूढ चित्र है। इसमें भोज के लक्षण का प्रभाव स्पष्ट है। इस सन्दर्भ मे आ. मम्मट ने लिखा है कि जहाँ जिस बन्ध में वर्षों की रचना खड्ग आदि की आकृति का हेतु हो जाती है, वह चित्र अलंकार कहलाता है।
1. तत्पादे भागे वा।
___ काव्यानु. 5/3 2. तद यमकं पादे तस्य च भागे भवति। तत्र पाजं पंचदशधा।
वही, . पु. 300 - काव्यप्रकाश, वृत्ति. पृ. 4।। + तथा भागजस्य द्विधा विभक्ते पादे प्रथम पादा दिभाग: पर्वव द्वितीया
दिपादादिभागेष। अन्तभागोऽन्तभागेष्वित्यष्टाविंशतिभेदाः। श्लोकान्तरे हि न भागावृत्ति: संभवति। त्रिधा विभक्ते द्वाचत्वारिंधात्। चतुर्धा विभक्ते षट्पंचाशत।
काव्यानु वृत्ति, पृ. 302, 304 5. तुलनीय - सरस्वती कण्ठामरप 2/1 6 तच्चित्रं यत्र वनां रुझायाकृतिहेतुता।
काव्यप्रकाश, १/120