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में रसों की दीप्ति कान्ति नामक अर्थगुष कहलाता है। इन गुपों के मल में वित्त के विस्तार रूप दीप्ति विद्यमान है, जो ओजोगुप का स्वरूप है अतः इनका अन्तर्भाव ओजोगुण में हो जायगा।'
ओजोगुण मिश्रित रचना की शिथिलता प्रसाद नामक शब्दगुप, अर्थ स्पष्टता रूप प्रसाद नामक अर्थगुप, शीघ्र ही अर्थ का बोध कराने वाली रचना अर्थव्यक्ति नामक शब्दगुप और जो रचना वस्तु के स्वभाव का स्पष्ट रूप से विवेचन कराये वह अर्थव्यक्ति नामक अर्थ गुप कहलाता है। इनका अन्तर्भाव हमें अभीष्ट लक्षप वाले प्रसादगुप में हो जाता है।'
काव्य में निबद्ध रचना शैली का अन्त तक परित्याग न करना समता नामक शब्दगुप, प्रक्रम का अभेद रूप अविषमता नामक अर्थगुप और रचना में गाम्यता का अभाव उदारता नामक अर्थगुप कहलाता है। समता तथा उदारता ये दोनों कमा: भग्नपक्रम व ग्राम्यदोष का अभावमात्र है। इस प्रकार वामन ने जो दस शब्दगुप व दस अर्थगप माने हैं वे ठीक नहीं है, क्योंकि उनका माधुर्य, ओज और प्रसाद नामक तीनों गुणों में अन्तर्भाव हो जाता है। पुन: आ, नरेन्द्रप्रभरि ने अपने द्वारा स्वीकृत इन माधुर्यादि
1. वही, पृ, 194 - 195 - वही, पृ. 195