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गया, अलंकार विषयक मान्यतायें दृढ़ होती गई अलंकारो की संख्या में भी उत्तरोत्तर वृद्धि हुई तथा अलंकारशास्त्र कई सम्प्रदायों में विभक्त हो गया, जिनमें अलंकार सम्प्रदाय, रीति सम्पदाय, रत सम्प्रदाय, ध्वनि-सम्प्रदाय, और वक्रोक्ति सम्पदाय प्रमुख हैं। यह सम्पदाय क्रमशः अलंकार,रीति, रस, ध्वनि व वक्रोक्ति को ही काव्य का सर्वस्व मानते थे। अलंकार सम्प्रदाय के संस्थापक आचार्य भामह थे। आचार्य भामह ने अलंकार को इतनी महत्ता प्रदान की कि सम्पूर्ण काव्यशास्त्र ही अलंकारशास्त्र इस संज्ञा से अभिहित होने लगा, पर अलंकारों का महत्व विभिन्न आचार्यों की दृष्टि में विभिन्न प्रकार से निरूपित हुआ। आचार्य दण्डी ने काव्य की शोभा बढ़ाने वाले सभी धर्मों को अलंकार कहा है। साथ ही आचार्य दण्डी ये भी स्पष्ट लिखते हैं कि दूसरे ग्रन्थों में जो सन्धि, सन्ध्यंग, वृत्ति, कृत्यंग तथा उनके लधपों आदि का वर्णन किया है, उन्हें हम अलंकारो के अन्तर्गत ही मानते हैं। आचार्य वामन ने काव्य में सौन्दर्य के आधायक सभी तत्वो' को अलंकार स्वीकार किया है।' ध्वन्यालोककार आचार्य आनन्दवर्धन ने ये स्वीकार किया कि जिस प्रकार कटक, कुण्डलादि लौकिक अलंकार कामिनी के शरीर को सुशोभित
I. काव्यादर्श, 2/1 2. काव्यादर्श, 2/367 3 काव्यालंकारसूत्र, 1/1/2-3