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आ. नरेन्द्रप्रभसरि ने वामन सम्मत दस अंदगुपों तथा दस अर्थगणों का वण्डन करके आ. मम्मट तथा हेमचन्द्र आदि द्वारा स्वीकृत मार्यादि तीन गुपों की स्थापना की है।' उनका कथन है कि वामन ने जो समास रहित पदों वाली रचना को माधुर्य गुप कहा है, वह “अस्त्युत्तरस्यार इत्यादि पध में विधमान है, पुनः उत्ते अर्थश्लेष का उदाहरप प्रस्तुत कर अर्थश्लेष को अलग से गुप मानना ठीक नहीं है। इसी प्रकार रचना की अकठोरता रूप शब्दसौकुमार्य, कोमलकान्तपदावली रूप अर्थसौ कुमार्य, अर्थ का दर्शन रूप अर्थ समाधि और घटना का श्लेष रूप अर्थशलेष नामक जो गुप है, इनका हमें जो मार्य गुप का स्वरूप अभीष्ट है, उसमे अन्तर्भाव हो जाता है। अत: उक्त गुपों को पृथक् - पृथक, मानना ठीक नहीं है।
रचना की गादता ओज नामक शब्दगुण, अर्थ की प्रादि ओज नामक अर्थगुण, अनेक पदों का एक पद के समान दिखाई देना शब्दालेष, आरोह और अवरोह का क्रम भब्दसमाधि, बन्ध की विकटता उदारता नामक शब्दगुप, बन्धु की उज्जवलता कान्ति नामक शब्दगुप और रचना
1. गुपश्चान्ये जगुः शब्दगतान दशार्यगान। माधुयोजः प्रसादास्तु सम्मतास्त्रय एव नः।।
अलंकारमहोदधि, 6/3 - अलंकारमहोदय, पृ. 190-91