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आ. हेमचन्द्र ने ओजगुप के उदाहरफप मे निम्न पद्य प्रस्तुत किया है -
म मुदत्तकृत्ताविरलगलगलद्रक्तसंसक्तधारा। धौतेशा डिप्रपसादोपनतजयजगज्जातमिथ्यामहिम्नास।। कैलासोल्लासनेच्छाव्यतिकरपिशुनोत्सर्पिदोदरापादोषपां चैषां किमेतत्फ्लामह नगरीरक्षपे यत्प्रयासः।।
यहां उपर्युक्त वर्षों की संरचना और दीर्घ समासादि के होने से ओजगुप की अभिव्यक्ति हो रही है। आ, मम्मट ने इसे अविमृष्ट विधेयांश नामक तमासगत दोष के उदाहरप रूप में भी उद्भूत किया है। उपर्युक्त कथित वर्षों से विपरीत वर्षों वाली रचना ओजगुप की व्यजक नहीं
होती है। जैसे -
देशः सोडमरातिशी फितवलयस्मिन्दा:पूरिताः। धादेव तथाविधः परिभवस्तातस्य केशगहः।। तान्यैवाहितशस्त्रयस्मरगुरुण्यस्त्रापि भावत्ति नो। यद्रामेप कृतं तदेव कुस्ते द्रोपात्मन: गोधनः।।'
1. वही, पृ. 291 - द्रष्टव्यः काव्यप्रकाशं वि, उदाहरप 350 3 वही, पृ. 291