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पसन्नता - जिस गुप के कारप शीघ्र पढ़ते ही अर्थावबोध हो जाता है उसे "प्रसन्नता अथवा प्रसक्ति कहते हैं।'
यथा
कल्पद्म इवाभाति वा सितार्थपदो जिनः। 2
यहाँ, यह कहने से कि जिनदेव कल्पतरू की भांति अभिलषित फल के देने वाले हैं उनकी दानशीलता तुरंत स्पष्ट हो जाती है। अत: यहाँ पर प्रसन्नता नामक गुण है।
समाधि - जहाँ पर एक वस्तु के गुप का आधान अन्य वस्तु के साथ किया जाता है, वहाँ समाधि नामक गुप होता है।'
यथा -
यथाश्रुभिररिस्त्रीपा राज : पल्लवित यशः।।*
1. अटित्यार्पकत्वं यत्प्रसप्तिः सोच्यते बुधैः।
____3/10 का पूर्वार्द 2. वही, 3/10 का उत्तराई 3 स समाधिर्यदन्यत्य गुपोऽन्यत्र निवेश्यते।
__ वही, 3/n का पूर्वार्ट ५. वही, /॥ का उत्तरार्द्ध