________________
297
इसमे आ. हेमचन्द्र ने पायः मम्मद का अनुसरण करते हुए मार्य गुप के व्यजक वर्ष, तमात और रचना का प्रतिपादन किया
है।' इत्ति में उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए लिखा है कि अपने वर्ग के (अन्तिम) प-यम वर्ष ड. भ प न म - से युक्त, शिर के वर्ष सहित
(क वर्ग, च वर्ग, आदि) अटवर्ग अर्थात ट वर्ग रहित - ट ठ ड ट रहित वर्ग और हत्व से व्यवहित रेफ और फार - ये वर्ष और असमास अर्धाद समास का अभाव या छोटे छोटे समास वाली तथा मुटु रमा मार्य गुप की व्यंजक होती है। यथा -
शिजानमञ्जुमजी राश्चारूकाञ्चनकाञ्चयः। कडू-पाक मुजा भान्ति जितानड. तवाङ्ग-नाः।।'
-
1. तुलनीयः मानि वर्गान्त्यगाः स्पर्शा अटवर्गा रपो लघ। अवृत्तिमध्यवृत्तिर्वा माधुर्ये घटना तथा ॥
काव्यपकाश, 8/74 निजेन निजवर्गसम्बन्धिनान्त्येन अपनमलक्षपेन भिरत्याकान्ता अटवर्गाः टठडटरहिता वर्गा हस्वान्तरितो च रेफसकारौ। असमास इति। समासमायोड ल्पसमासता वा, मुदी च रचना। तत्र माधुर्ये माधुर्यस्य व्यजिकेत्यर्थः।
काव्यानुशासन, वृत्ति, पृ. 289 3 वही, पृ. 289