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शान्ति, यथा -
फलै : क्लुप्ताहारः प्रथममपि निर्गत्य सदनादनासक्तः सौख्ये क्वचिदपि पुरा जन्मनि कृती। तपत्यन्नश्रान्तं ननु वनभुवि श्रीफ्लदलैरवण्डैः खण्डेन्दोधिचरमकृत पादार्चमनतौ ।।।
यहा विरुद्ध सन्धि के त्याग से फ्लैः क्लुप्ताहारः' में विसर्गों के अलोप है और समासहीन होने से इस ग्लोक में “कान्ति' नामक गुप है।
अर्थव्यक्ति - जहाँ पर अर्थ को समझने में किसी तरह का विघ्न नहीं रहता वहाँ अर्थव्यक्ति* गुप सम्झना चाहिए।
यथा
त्वतन्यस्व ता सूर्ये लुप्ते रात्रिरमदिवा।।'
सूर्यास्त होने से रात्रि का आगमन स्वाभाविक है। इसको समझने के लिये किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है। अतएव इस पध में अर्थव्यक्ति नामक गुप है।
• वाग्भटालंकार, 17 ॐ यज्ञेयत्वमर्थन्य सार्यव्यक्तिः स्मता यथा।
वही, 3/8 का पूर्वार्द 3 वही, 3/8 का उत्तराई