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।' इत्यादि में पकृत श्रृंगार रस के प्रतिकूल शान्त रस के
प्रकटय• • • • •
अनित्यता प्रकाशन रूप विभाग का ग्रहण किया गया है तथा उससे प्रकाशित निर्वेद भी आस्वादित हो रहा है, अतः दोष है।
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किन्तु यही विभावादि जब बाधित रूप में कथित होते हैं तो दोष नहीं होता अपितु प्रकृत रस का परिपोष होता है, यथा- क्वाकार्य शशलक्ष्मणः 12 इत्यादि। इसी प्रकार "सत्यं मनोरमाः शमा : ....13
इत्यादि भी ।
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इसी प्रकार आश्रयैक्य विरोध, नैरन्तर्य विरोध व अनङ्गत्व विरोध भी होता है।
आश्रयैक्य विरोध उसे कहते हैं, जहाँ एक ही आश्रय में वीर और भयानक जैसे दो विरोधी रसों का वर्णन हो। इस प्रकार का दोष एक रस का प्रतिनायकगत वर्णन कर देने से समाप्त हो जाता है। 4
जहाँ एक ही आश्रय में बिना किसी व्यवधान के दो विरोधी रसों का वर्णन हो तो उसे नैरन्तर्य विरोध कहते हैं। उदाहरण शान्त व श्रृंगार ये दो विरोधी रस एक साथ किसी व्यक्ति में उत्पन्न नहीं होते हैं। अत:
1. वही, पृ. 161
2. वही, पृ. 162
3. वही, पृ. 162
4. वही, पृ, 162