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आ. रामचन्द्र - गुपचन्द्र ने 5 रसदोषों का उल्लेख किया है(1) रसों का अनौचित्यपूर्ण वर्पन, (2) अंगों की उगता अर्थात् प्रधानमत रस का प्रधान रस की अपेक्षा विस्तारपूर्वक वर्पन, (3) मुख्य रस की पुष्टि का अभाव, (4) मुख्य रस का आवश्यकता से अधिक विस्तार और (5) अंगी (प्रधान) रस को भुला देना।
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रतों का अनाचित्यपूर्वक वर्णन करना - सहदयों के मन शंका या
संदेह उत्पन्न करने वाला कर्म अनौचित्य कहलाता है, और वह अनेक प्रकार का हो सकता है। यह रस का अनौचित्य -
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भावादि के वर्पन रूप होता है।
चैते - व्यजत मानमलं ... ।' इत्यादि।
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कहीं बेमौके विस्तार कर देना भी रत दोष होता है जैसे वेपीसंहार के द्वितीयांक में धीरोद्त प्रकृति के नायक होने पर भी भीष्मादि लायों वीरो का नाश कर डालने वाले भीषण युद्ध के प्रारम्भ होने पर भी भानुमती के प्रति श्रृंगार का वर्पन अकाण्ड - प्रथन रूप रसदोष का उदाहरण है।
" दोषोइनौटित्यसकोगय अपोषोत्युक्तिरी अमित 2. सहृदयानां विचिकित्साह्तु कर्मानौचित्यं तच्यानेकधा,
3. वही, पृ, 324