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भयानक रस: भयानक रस का स्थायिभाव भय है। इसकी उत्पत्ति भयानक दृश्यों को देखने से होती है। आचार्य भरत ने विकृत ध्वनि, भयानक प्राणियों के दर्शन, सियार और उल्लू के द्वारा त्रास, उद्वेग, शून्य - गृह अरण्य - प्रवेश, भरण, स्वजनों के वध अथवा बन्धन के देखने सुनने या कथन करने आदि विभावों से उसकी उत्पत्ति मानी है। '
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जैनाचार्य वाग्भट प्रथम ने भयानक वस्तुओं के दर्शन से भयानक रस की उत्पत्ति मानी है। यह रस प्रायः स्त्रियों, नीच व्यक्तियों तथा बालकों में वर्णित किया जाता है। 2
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1. नाट्यशास्त्र, 6/68
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हेमचन्द्राचार्य के अनुसार विकृत स्वर का श्रवण आदि विभाव, कर - कम्पन आदि अनुभाव व शंकादि व्यभिचारिभाव वाला भय नामक स्थायिभाव अभिव्यक्त होने पर भयानक रस कहलाता है। 3 हेमचन्द्र का यह कथन भरतमुनि से प्रभावित है। आदि पद से पिशाचादि का विकृत स्वर श्रवण, उसका देखना, स्वजनबध बन्धन आदि का दर्शन, श्रवण, ॉन्यगृह, अरण्यगमन आदि विभाव, करकम्पन, चलदृष्टि निरीक्षण, हृदय, पाद
स्पन्दन, शुष्क औष्ठ, कण्ठ, मुखवैवर्ण्य, स्वरभेद आदि अनुभाव तथा शैका
वाग्भटालंकार, 5/27
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3. विकृतस्वरश्रवणादिविभावं करकम्पाद्यनुभावं शंका दिव्य भिचारि भयं भयानकः । । काव्यानुशासन, 2/15