________________
250
यथा -
जाहि शत्रुकलं कृत्स्नं जय विश्वंभिरा मिमास। न च ते कोऽपि विद्वेष्टा सर्वभूतानुकम्पिन।।'
यहाँ विद्वेष के अभाव में शत्रुवध पूर्वापर विरूद्ध होने से उक्त दोष
१५६ गाम्य - "अवैदग्ध्यं गाम्यत्वं' अर्थात अविदग्धा (चातुर्य का अभाव) गाम्यत्व दोष है।
यथा
स्वपिति यावदयं निक्टो जनः स्वपिमि तावदह किमपेति ते। इति निगय निरनुमेखलं ममकरं स्वकरेप स्रोध सा ।।2
15
अपलील - "वीडादिव्यजकत्वमलीलत्वं. अर्थात लज्जा आदि की
व्यजकता अमलील दोष है। जैसे -
हन्तुमेव प्रवृत्तस्य स्तब्धत्य विवरैषिपः। यथाशु जायते पातो न तथा पुनरून्नतिः ।।
दुष्ट व्यक्ति के लिये प्रयुक्त उपर्युक्त पर से पुरुष जननेन्द्रिय
-
-
-
-
-
-
१. वही, पृ. 262 2. वही, पृ. 262 , वही, पृ. 262