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यहाँ पर शस्त्रत्याग में हेतु की आकांक्षा बने रहने से दोष है। इते आ. मम्मट ने निर्हेतुत्व के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है।।
___ "जहाँ आकांक्षा नहीं रहती वहां दोष नहीं रहता है। इसका उदाहरप “चन्द्रं गता पदमगुपान्न भुङ्क्ते' इत्यादि हेमचन्द्र ने मम्मट के सदृशा ही दिया है। 2 यहाँ रात्रि में कमल का संकोच और दिन में चन्द्रमा की कान्तिरहितता लोकप्रसिद्ध है। 'न मुक्ते" के लिये हेतु की अपेक्षा नहीं रहती है। मम्मट ने नित नामक एक पृथक् अर्थदोष स्वीकार किया है। आचार्य हेमचन्द्रानुसार निर्हेतु का साकांक्षता में ही अन्तर्भाव हो जाता है, अलग ते मानना उचित नहीं है।
3178 संदिग्धता - "संघायहेतुत्वं सन्दिग्धत्वं' अर्थात् संशय के हेतु को संदिग्ध दोष कहते हैं।
यथा
मात्सर्यमुत्सार्य विचार्य कार्यमार्याः समर्यादमदाहरन्तु। रम्या नितम्बाः किम मधरापामुत स्मरस्मेर विलासिनीनाम्।।
यहाँ प्रकरप के अभाव में सन्देह होने से दोष है। शान्त अथवा श्रृंगार किसी एक का कथन करने पर अर्थ निश्चित हो सकता है।
• काव्यप्रकाश, पृ. 330 - काव्यानुशासन, पृ. 263 3 काव्यानु टीका, पृ. 263 + वही, पृ। 263