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अवहित्था : धृष्टता आदि से उत्पन्न विकार को छिपाने का
यत्न अवहित्था कहलाता है। इसमें (आकार - विकृति को छिपाने के लिए) दूसरी क्रिया की जाती है।
को
जाड्य : इष्टादि से (अर्थात् इष्ट प्राप्ति की प्रसन्नता में ) कार्य है। मौन तथा टकटकी लगाकर देखने के द्वारा इसका
जाना जाड्य
अभिनय किया जाता है।
भल
आलस्य : श्रम आदि के कारण कार्य में उत्साह का न होना
आलस्य कहलाता है। जम्भाई आदि के द्वारा इसका अभिनय किया जाता
है।
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विबोध : शब्दादि के कारण होने वाला निद्राभंग "विबोध" कहलाता है। तथा अंगड़ाई आदि अनुभाव होते हैं।
इस प्रकार ये नाट्यदर्पणकार द्वारा वर्णित तैतींस व्यभिचारिभाव
नरेन्द्रप्रभरि को आ. हेमचन्द्र सम्मत व्यभिचारिभाव की व्याख्या अभीष्ट है।' उन्होंने तैतीस व्यभिचारिभावों का नामोल्लेख करते हुए प्रत्येक का सोदाहरण लक्षण प्रस्तुत किया है। 2 आ. वाग्भट द्वितीय ने तैतींस
1. विविधमा भिमुख्येन स्थायिधर्माणामुपजीवनेन स्वधर्माणां समप्यपेन च चरन्तीति व्यभिचारिणः
अलंकारमहोदधि, 3/33 वृति
वही, 3/31-50