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यहाँ अधिमात्रोपाय आदि शब्द योगशास्त्र मात्र में प्रसिद्ध होने से दोष है। इसके कहीं - कहीं गुप होने का उदाहरप, यथा “अस्माकम्य -
हेमन्ते' इत्यादि।
अश्लीलत्व - तीदा, जगप्सा तथा अमंगल व्यजकतारुप भेद से ये तीन प्रकार का होता है।
वीडाभिव्यजक पदगत, यथा -
साधनं सुमल्यस्य यन्नान्यस्य विलो क्यते। तस्य धीशालिनः कोऽन्यः सहेतारालितां भुवम् ।।
यहाँ पर “साधन शब्द पुरुष का लिंगवाचक होने से वीडाभि
व्य-जक है।
वाक्यगत, यथा -
भूपतेल्पतर्पन्ती कम्पना वामलोचना। तत्तत्पहफ्नोत्साहवती मोहनमादधौ ।।
यहाँ प्रपन, उपसर्पप और मोहन शब्द वीडादायक होने से दोष है। इसी प्रकार जगप्सा और अमंगलव्यजक अश्लीलत्व के भी पदगत और वाक्यगत दोष के उदाहरप आ, हेमचन्द्र ने दिये हैं। साथ ही कामशास्त्र
. वही, पृ. 229 2. वही, पृ. 229 3 वही, पृ. 230