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वाक्यगत, यथा
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शय्या शाद्बलमासनं शुचिशिला सद्द्मद्रुमापामध:
शीतं निर्झरवारि पानमशनं कन्दाः सहाया मृगाः ।। इत्यप्रार्थितसर्वलभ्य विभवे दोषोऽप्यमेको वने ।
कष्टप्रापार्धिनि यत्परार्थघटनाबन्ध्यैर्वृथा स्थीयते । ।'
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यहाँ " शाद्दल" इस अनुवाद वाक्य से " शय्या" आदि विधेय है। दोष ही है, वाक्यार्य नहीं ।
यहाँ शब्द रचना विपरीत करने से वाक्य
विरूद्ध बुद्धिकृत पदगत, यथा
वाक्यगत, यथा
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गोरपि यद्वाहनतां प्राप्तवतः सोऽपि गिरिसुता सिंहः ।
सविधे निरहङ्कारः पायादः सोऽम्बिकारमपः 11 2
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यहाँ अम्बिका रमण का अर्थ गौरीरमप विवक्षित है, किन्तु मातृरमण इस प्रकार विरुद्धबुद्धि उत्पन्न होने से दोष है।
1. वही, पृ. 242
22. वही, पृ. 260
3. वही, पृ. 260
अनुत्तमानुभावस्य परैरपिहितौजसः ।
अकार्य सुदोऽस्माकमपूर्वास्तव की तय 113
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