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अर्द्धान्तरस्थैकपदता - जहाँ पूर्वार्द्ध से सम्बद्ध एक पद उत्तरार्द्ध में स्थित हो।
यथा
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अनिष्टान्यार्थ
यथा -
यथा
मावदर्थपदां वाचमेवमादाय माधवः ।
विरराम महीयांसः प्रकृत्या मितभाषिणः ।। '
यहाँ ' विरराम' इस पद को पूर्वार्द्ध में रखना उचित था ।
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होने से दोष है।
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जहाँ अन्यार्थ प्रकृत रस के विरूद्ध हो ।
राममन्मथशरेण ताडिता दुःसहेन हृदये निशाचरी ।
गन्धवद्द् रूधिरचन्दनोचिता जीवितेश्वसतिं जगाम सा ।। 2
अस्थानासमास दुःस्थित
यहाँ प्रकृत वीभत्स रस के विरूद्ध शृंगार रस का व्यञ्जक अन्यार्थ
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वही, पृ. 136
वही. पृ. 136
वही. पृ. 139
अनुचित स्थान पर समाप्त करना ।
अद्यापि स्तनशैलदुर्गविषमे सीमन्तिनीनां हदि ।
स्थातुं वाञ्छति मान एवं धिगिति क्रोधादिवालोहितः ।।
प्रोद्यद्दूरतरप्रसारितकरः कर्षत्यसौ तत्क्षणात् ।
फुल्लत्कैखको शैनिस्सरदलिश्रेणीकृपापं शशी 113
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