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यदि यहाँ आकार शब्द का अवयव संस्थान (आकृति) अर्थ विवक्षित है तब तो परस्पर परिहार की स्थिति वाले दोनो अर्थों में यह मेद सिद ही है, अतः कथन व्यर्थ है। यदि आकार से "आ" वर्ष विशेष लिया जाता है तो वर्ष नियत होने से कृपप ओर कृपाप रूप अर्थो के साथ उसका सम्बन्ध संभव नहीं है। अतः अनन्वितता दोष है। मम्मटाचार्य ने इष्ट सम्बन्ध के अभाव को अभवमतदोष कहा है।
आचार्य मम्मट तथा हेमचन्द्र के वाक्यदोषों में मौलिक रूप से प्रायः समानता है परन्तु इनके क्रम तथा कुछ नामों में अन्तर है। जैसे - मम्मट के कथित पदता को आचार्य हेमचन्द्र ने उक्तपदत्व कहा है। इसी प्रकार अस्थानपता को अस्थानस्थपदत्व, उपहतवितर्गता को अविसर्गत्व कहा है। अनन्वितत्व नामक वाक्य - दोष का मम्मट ने उल्लेख नहीं किया है, यह नाम नया है। मम्मट का अभवन्मत सम्बन्ध दोष अनन्वितत्व के बहुत निकट है। लुप्तविसर्ग और ध्वस्तविसर्ग को हेमचन्दाचार्य ने अविसर्गत्व के अन्तर्गत ही माना है तथा विसन्धि के तीन भेदों को पृथक् - पृथक् न मानकर एक ही भेद माना है।
इस प्रकार मम्मट के 21 वाक्यदोषों के स्थान पर आ. हेमचन्द्र ने तेरह ही वाक्य-दोषों को स्वीकार किया है।
. काव्यप्रकाश, पृ. 312