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अदभत रस : इसका स्थायिभाव विस्मय है जिसकी उत्पत्ति आश्चर्य -जनक वस्तुओं के दर्शन से होती है। भरतमुनि ने इसकी उत्पत्ति दिव्य वस्तुओं के दर्शन, इच्छित वस्तु की प्राप्ति, उत्तम वन एवं देवालय में आने, विमान, माया, इन्द्रजालादि के दर्शन आदि विभावों से मानी है।
वाग्भट प्रथम ने विस्मय स्थायिभाव वाले अदभूत रस की उत्पत्ति असंभव वस्तु के दर्शन अथवा अवप से मानी है।2
हेमचन्द्र के अनुसार दिव्य-दर्शनादि विभाव वाला, नयनविस्तारादि अनुभाववाला और हर्षा दि व्यभिचारिभाववाला, विस्मय नामक स्थायिभाव चर्वणीयता की स्थिति को प्राप्त होने पर अद्भुत रस कहलाना है।' आदि पद से दिव्य-दर्शन, ईप्सित मनोरथ की पाप्ति, उपवन, देवकुल आदि गमन, सभा, विमान, माया, इन्द्रजाल अतिशा यि शिल्पकर्म आदि विशाव, नयन-विस्तार, अनिमिष-प्रेक्षण, रोमांच, अशु, स्वेद, साधुवाद, दान हाहाकार, वेलांगुलिभमण आदि अनुभाव तथा हर्ष, आवेग, जड़ता आदि
1. नाट्यशास्त्र, 6/74, 2 वाग्भटालंकार, 5/25 3 काव्यानुशासन, 2/16