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भयानक रस होता है।' उनका ये भयानक रस- विवेचन हेमचन्द्र ते प्रभावित
है।
इस प्रसंग में वाग्भट द्वितीय ने भी हेमचन्द्र सम्मत विवेचन ही प्रस्तुत किया है। 2
उपर्युक्त विवेचन से ये स्पष्ट होता है कि जैनाचार्यों द्वारा किया गया भयानक रस विवेचन भरत परम्परा का ही पोषक है।
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वीभत्स
रस : इसका स्थायिभाव जुगुप्सा है। वीभत्स दृश्यों के दर्शन से इसकी उत्पत्ति होती है । आचार्य भरत ने भयानक रस की उत्पत्ति अय और अप्रिय पदार्थों को देखने, अनिष्ट वस्तु के श्रवण, दर्शन और परिकीर्तन आदि विभावों से मानी है । 3
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जैनाचार्य वाग्भट प्रथम ने जुगुप्सा नामक स्था विभाव ते इसकी उत्पत्ति मानी है। उनके अनुसार अह्य वस्तु के श्रवण अथवा दर्शन इसमें
विभाव एवं थूकना व मुख विकृति आदि इसके अनुभाव हैं। उनका कथन है कि इन थूकना आदि अनुभावों का वर्णन उत्तम जनों के सम्बन्ध में नहीं किया जाता है। 4
1. कम्पादिकारणं करस्वरश्रुत्याद्युदंचितं भयंभवति शंकादिव्यभिचारी भयानकः ।। अलंकारमहोदधि, 3/12
2. काव्यानुशासन, वाग्भट, पृ. 56
3. नाट्यशास्त्र, 6/72
ho वाग्भटालंकार, 5/31