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उदात्त आदि स्वर ते अर्थ विशेष का ज्ञान काव्य में
अनुपयोगी है।' परन्तु काकु रूपी स्वर अपना पृथक् महत्व रखता है। जेते - मध्नामि कौरवशतं समरे न कोपात्" यहाँ काकु रूप स्वर ते अर्थ विशेष का ज्ञान होता है।
आदि पद से अभिनय, अपदेश. निर्देशा. संज्ञा. इंगित और
आकार को गहप किया गया है।2
अभिनय - यथा - "इतने बड़े स्तनों वाली, इतने बड़े नेत्रों ते, मात्र इतने दिनो में, इस प्रकार हो गई।
अपदेश - यथा - यहाँ से सम्पत्ति को प्राप्त किया हुआ वह राक्षस यहाँ ही विनष्ट होने योग्य नहीं है। विषा:- वृक्ष का भी पालन-पोषप कर उसे अपने द्वारा ही काटना उचित नहीं है।*
निर्देश - यथा - "राजकुमारीजी । भाग्य से हम लोग ठीक है कि यहाँ पर ही कोई किसी का रहा है, यह हमको अंगुली के संकेत से कह रहे हैं।
1. वही, पृ. 65 2. वही, पृ. 65
वही, पृ. 65 + वही, पृ. 65 5. वही, पृ. 65