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चैकि आ. हेमचन्द्र ने व्युत्पत्ति तथा अभ्यास को प्रतिभा का संस्कारक माना है, अतः व्युत्पत्ति तथा अभ्यास काव्य के साक्षात हेतु नहीं है, क्योंकि प्रतिभारहित व्युत्पत्ति तथा अभ्यास विफल देखे गये हैं।' यहाँ यह ज्ञातव्य है कि हेमचन्द्र ने यद्यपि दण्डी का साक्षात उल्लेख नहीं किया है तथापि उक्त कथन से ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने दण्डी के "न विद्यते यद्यपि पूर्ववासना ... ।" इत्यादि कयन का खण्डन अवश्य किया है।
व्युत्पत्ति का स्वरूप प्रस्तुत करते हुए आ. हेमचन्द्र ने स्थावरजंगमात्मक लोकवृत्त में शब्द, छन्द नाममाला, श्रुति, स्मृति, पुराण, इतिहास, आगम, तर्क, नाट्य, अर्थशास्त्रादि ग्रन्थों में तथा महाकवि
1. अतएव न तो काव्यस्य साक्षात्कार प्रतिभोपकारिपौ तु भवतः। दृश्यते हि प्रतिभाहीनस्य विफलौ व्युत्पत्यभ्यासौ।
वही, 1/7 वृति
2. जैनाचार्यो का अलंकारशास्त्र में योगदान -
डा. कमलेशकुमार जैन पृ. 75 से उदधृत |