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हेमचन्द्राचार्यानुसार यशः प्राप्ति केवल कवि को होती है।' सहदयों को कान्तासम्मित उपदेक्षा की प्राप्ति होती है। प्रभुसम्मित उपदेश शब्द प्रधान, मित्रसम्मित उपदेश अर्थप्रधान होता है तथा कान्तासम्मित उपदेश में शब्द तथा अर्थ दोनों का गुपीभाव होकर रस की प्रधानता हो जाती है। कान्ता की भांति रसप्रधान विलक्षप काव्य सरसता के सम्पादन द्वारा जो उपदेश प्रदान करता है, वही सहदयों का
प्रयोजन है।2
मम्मटादि ने जो धनागमादि को काव्य के प्रयोजन के रूप में स्वीकार किया है, उसका मण्डन करते हुए हेमचन्द्र लिखते हैं कि धन प्राप्ति अनैका न्तिक है अर्थात काव्य से धन प्राप्ति हो भी सकती है और नहीं भी। व्यवहारज्ञान शास्त्रों से भी संभव है तथा अनर्थ निवारण प्रकारानार मन्त्रानुष्ठान आदि ते भी हो सकता है, अत: इनका
1. यशस्तु कवेरेव। यत इयति संतारे चिरातीता अप्यघ यावत् कालिदासादयः सहदयेः स्तयन्ते कवयः।
वही, 1/3, वृत्ति 2. प्रभुतुल्येभ्यः शब्दप्रधानेभ्यो वेदागमा दिशास्त्रेभ्यो मित्रतभितेभ्यो - ऽर्थप्रधानेभ्यः पुरापपकरपादिभ्यश्च शब्दार्थयोपभावे रसप्राधान्ये च विलक्षणं काव्यं कान्तेव सरसतापादनेन संमुखीकृत्य रामादिवत वर्तितव्यं न रावपादिवत इत्युपदिशतीति सहृदयानां प्रयोजन।
वही, 1/3, वत्ति