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स्वर्ग से तात्पर्य आनन्द से है। चारो वर्गों की व्युत्पत्ति का भी पार्यन्तिक तथा मुख्य फल आनन्द ही है।' आ. हेमचन्द्र के अनुसार आनंद की प्राप्ति कवि तथा सहृदय दोनों को होती है। सहदयों को रसानुभूति होती है, इसे तो प्राय: सभी आचार्यों ने निर्विरोध स्वीकार किया है। रही बात कवि की तो कवि भी जब भावुक की स्थिति में आता है तो उसे भी काव्य की भावना करने पर अलौकिकानन्द की अनुभूति होती है। अभिनव गुप्त ने भी लोचन के मंगलाचरप मे लिखा है - "सरस्वत्यास्तत्त्वं कवि सहृदयाख्यं विजयते।' अर्थात जिसका कवि तथा सहृदय में निरन्तर "ख्यान' अर्थात स्फुरण होता है - वह सरस्वती का तत्त्व(काव्य) विजयी हो।
1. चर्तुवर्गव्युत्पत्तेरपि चानन्द एव पार्यन्तिकं मुख्य - फल मिति ।
वही, विवेक टीका, पृ. 4 2. इदं सर्वप्रयोजनोपनिषदमात कवितहदययोः काव्यप्रयोजनम्।
वही, 1/3 वृत्ति